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•दोस्तों आज के इस ब्लॉग में बात करेंगे सोयाबीन में इल्ली रोग लग जाए तो उसकी रोकथाम कैसे की जाती हैं
•और पहचान किस तरह से की जाती है और उसका निवारण किस तरह से किया जाता है
• मुख्यता सोयाबीन में इल्ली रोग लगने का कारण होता है कि.
•रिमझिम बारिश और धूप नहीं निकलने से फसल में नमी से कंबल कीट का प्रकोप बढ़ जाता है
सबसे पहले पौधे के बचाव का उपाय है कि अगर कम जगह में कीड़ा लगा है
•और पहचान किस तरह से की जाती है और उसका निवारण किस तरह से किया जाता है
• मुख्यता सोयाबीन में इल्ली रोग लगने का कारण होता है कि.
•रिमझिम बारिश और धूप नहीं निकलने से फसल में नमी से कंबल कीट का प्रकोप बढ़ जाता है
सबसे पहले पौधे के बचाव का उपाय है कि अगर कम जगह में कीड़ा लगा है
■ कीट ग्रस्त पौधे उखाड़कर फेंके जिससे कि आगे किट नहीं फैल पाए
✔तम्बाकू इल्ली✔
यह एक बहुभक्षी कीट है। इसके अगले पंख सुनहरे एवं धूसर भूरा रंग लिए होते है तथा पंख सफेद होते है। इस कीट की सूंडी 3.5 से 4 सेमी लंबी हरे भूरे रंग की होती है। शरीर पर भूरे रंग के धब्बे तथा आड़ी तिरछी व लंबी पट्टियांं होती हैं। इल्ली की पीठ पर दोनो ओर एक-एक तथा निचले भाग में दोनों ओर पीली धारियांं होती है। इस कीट की सूंडी फसल का नुकसान पहुंचाती है। प्रारंभ में झुण्ड में सूण्डियां एक साथ पत्तियों को काटने व चबाने के मुखांगों से काटकर क्षति पहुुचाती है।कभी-कभी ये कलियों, फूलों तथा फसलों को भी नुकसान पहुंचाती है।
यह एक बहुभक्षी कीट है। इसके अगले पंख सुनहरे एवं धूसर भूरा रंग लिए होते है तथा पंख सफेद होते है। इस कीट की सूंडी 3.5 से 4 सेमी लंबी हरे भूरे रंग की होती है। शरीर पर भूरे रंग के धब्बे तथा आड़ी तिरछी व लंबी पट्टियांं होती हैं। इल्ली की पीठ पर दोनो ओर एक-एक तथा निचले भाग में दोनों ओर पीली धारियांं होती है। इस कीट की सूंडी फसल का नुकसान पहुंचाती है। प्रारंभ में झुण्ड में सूण्डियां एक साथ पत्तियों को काटने व चबाने के मुखांगों से काटकर क्षति पहुुचाती है।कभी-कभी ये कलियों, फूलों तथा फसलों को भी नुकसान पहुंचाती है।
■इस कीट के नियंत्रण हेतु ■
✔ अण्डों के गुच्छों को पत्तियों के सहित तोड़कर नष्ट कर देना चाहिये।
एन.पी.वी. न्यूक्लियर पोलीहैडोसिस वायरस 250 एल.ई.250 सूंडी के बराबर के घोल को प्रति हैक्टेयर छिड़काव करेे। या ट्रायजोफॉस, क्लोरोपायरीफॉस 25 ई.सी. का प्रयोग करना चाहिए।
■सेमी लूपर■
हरे सेमीलूपर सोयाबीन की फसल में अगस्त से सितम्बर के माह में आक्रमण करते है। वयस्क हरे रंग के होते है। नवीन विकसित लार्वा हल्के हरे रंग के होते है। जिस पर कोमल ऊतक शिराओं पर उपस्थित होते हैं। इस कीट की इल्लियां पौधों की पत्तियों को खाकर नुकसान पहुँचाती हैं। अधिक प्रकोप होने पर यह कोमल प्ररोहों, कलियों एवं पत्तियों की नसों को छोड़कर शेष सभी हरे भागो को खाकर नष्ट कर देती है।
✔इसके नियंत्रण हेतु ✔
जैविक नियंत्रण में इल्लियों की शुरूआती अवस्था में बैसिलस थुरिजिंएसिस ब्लूबेरिया बेसियाना 1लीटर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें। यह संभव न होने पर काईटिन इनहिबिटर जैसे डायफ्लूबेन्जूरान 25 डब्ल्यू.पी. 300 – 400 ग्रा.प्रति हैक्टेयर या ल्यूफेनरान 5E.C. 400-600 मिली. प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करेे।
रासायनिक विधि से नियंत्रण हेतु क्लोरोपायरीफॉस 20E.C.का 1.5 ली. प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
छिड़काव करते समय उपर्युक्त रसायन के साथ प्रति हैक्टेयर क्षेत्र में कम से कम 750 लीटर पानी का उपयोग करें।
■ हैलीकोवरपा आर्मीजेरा ■
इस कीट की नव विकसित इल्ली हरे रंग की होती है पूर्ण विकसित इल्ली 35 मिमी.लंबी हरे रंग की होती है। अग्रपंख पीले भूरे रंग के तथा इनके किनारे काले होते है। इस कीट सूंडी हानिकारक होती है जो फसल पर जून से जुलाई तक सक्रिय रहती है। इल्ली प्रारंभ में कोमल टहनियों को खाती है। तथा फली अवस्था में फलियों को खाती है। इसके वयस्क कीट मानसून शुरू होने पर अंडे का निरोपण करते है।
✔इसके नियंत्रण हेतु✔
••परभक्षी पक्षियों का फली अवस्था में फसल में छोड़ देना चाहिए।
✔प्रोफेनोफॉस 50ई.सी./ 1500 मि.ली. प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करना चाहिए।
■सेमी लूपर■
हरे सेमीलूपर सोयाबीन की फसल में अगस्त से सितम्बर के माह में आक्रमण करते है। वयस्क हरे रंग के होते है। नवीन विकसित लार्वा हल्के हरे रंग के होते है। जिस पर कोमल ऊतक शिराओं पर उपस्थित होते हैं। इस कीट की इल्लियां पौधों की पत्तियों को खाकर नुकसान पहुँचाती हैं। अधिक प्रकोप होने पर यह कोमल प्ररोहों, कलियों एवं पत्तियों की नसों को छोड़कर शेष सभी हरे भागो को खाकर नष्ट कर देती है।
✔इसके नियंत्रण हेतु ✔
जैविक नियंत्रण में इल्लियों की शुरूआती अवस्था में बैसिलस थुरिजिंएसिस ब्लूबेरिया बेसियाना 1लीटर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें। यह संभव न होने पर काईटिन इनहिबिटर जैसे डायफ्लूबेन्जूरान 25 डब्ल्यू.पी. 300 – 400 ग्रा.प्रति हैक्टेयर या ल्यूफेनरान 5E.C. 400-600 मिली. प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करेे।
रासायनिक विधि से नियंत्रण हेतु क्लोरोपायरीफॉस 20E.C.का 1.5 ली. प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
छिड़काव करते समय उपर्युक्त रसायन के साथ प्रति हैक्टेयर क्षेत्र में कम से कम 750 लीटर पानी का उपयोग करें।
■ हैलीकोवरपा आर्मीजेरा ■
इस कीट की नव विकसित इल्ली हरे रंग की होती है पूर्ण विकसित इल्ली 35 मिमी.लंबी हरे रंग की होती है। अग्रपंख पीले भूरे रंग के तथा इनके किनारे काले होते है। इस कीट सूंडी हानिकारक होती है जो फसल पर जून से जुलाई तक सक्रिय रहती है। इल्ली प्रारंभ में कोमल टहनियों को खाती है। तथा फली अवस्था में फलियों को खाती है। इसके वयस्क कीट मानसून शुरू होने पर अंडे का निरोपण करते है।
✔इसके नियंत्रण हेतु✔
••परभक्षी पक्षियों का फली अवस्था में फसल में छोड़ देना चाहिए।
✔प्रोफेनोफॉस 50ई.सी./ 1500 मि.ली. प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करना चाहिए।
■और अधिक जानकारी के लिए आप हमारे इस वीडियो को देखें
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